दीपांश शुक्ला फ्रेशर भाषण
असीम सौंदर्यता और पवित्र पांडव नगरी का प्रतीक इस शहडोल की पावन भूमि को नमन करता हु।
यहाँ पर विराजमान वह वट वृक्ष जिसकी छाव में यह uit परिवार फल फूल रहा है ऐसे कृतिज्ञता अभिभूत माननीय प्राचार्य महोदय को कोटि कोटि नमन करता हु,
जो पेड़ो में जल सींच कर संरक्षण कर रहे ऐसे विद्वत शिक्षको को कोटि कोटि नमन करता हूं
यहाँ पधारे सभी नवआगंतुको का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करता हु। एवं मेरे सभी प्यारे सहपाठियों
मैं आज यहाँ पर बहोत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं
ये uit का मंच मेरे लिए मेरी प्रतिष्ठा का मंच है,यह मंच मेरी योग्यताओ को बढ़ाने वाला मंच है,ये मंच मेरी क्षमताओं को बढ़ाने वाला मंच है,मेरे समर्थ को बढ़ाने वाला मंच है।
जितने भी आप यहाँ बैठे है हम सभी छात्र भविष्य के निर्माता है,हम एक शिल्प कार है हम ही है जो भारत का भविष्य रचेंगे,भारत को स्वर्णिम बनाएंगे हम ही है जो भारत को एक नई दिशा प्रदान करेंगे हम ही है जो भारत को विश्व गुरु बनाएंगे पर इसके लिए जरूरी है हमारा मूलमंत्र इस श्लोक में निहित है,
काक चेष्टा, बको ध्यानं,
स्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी, गृहत्यागी,
विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
भावार्थ यह है
कौवे की तरह जानने की चेष्टा,
बगुले की तरह ध्यान,
कुत्ते की तरह निद्रा
अल्पाहारी, आवश्यकतानुसार खाने वाला
और गृह-त्यागी होना चाहिए
इन पांचों सिद्धान्त पर चलकर महर्षियो द्वारा प्रदत्त मूलमंत्र "वशुदेव कुटुम्बकम" के सपने को साकार कर सकते है।
क्योंकि
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥
इसका भाव है:-
मूर्ख की अपने घर पूजा होती है, मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है, राजा की अपने देश में पूजा होती है विद्वान् की सब जगह पूजे जाते है|
जगतगुरु स्वामी विवेकानंद जी का यह उदगार अत्यंत सारगर्भित है :-की हमें जो करना है। जो कुछ भी बनना है। हम उस पर ध्यान नहीं देते है , और दुसरो को देखकर वैसा ही हम करने लगते है। जिसके कारण हम अपने सफलता के मंजिल के पास होते हुए दूर भटक जाते है। इसीलिए अगर जीवन में सफल होना है ! तो हमेशा हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्र्ति करना चाहिए !
दोस्तो
एक अंतिम पंक्ति के साथ अपनी वाणी को विराम देना चाहूंगा
कई जीत बाक़ी हैं कई हार बाक़ी हैं अभी ज़िंदगी का सार बाक़ी है.
यहाँ से चले हैं नयी मंज़िल के लिए ये तो एक पन्ना था अभी तो पूरी किताब बाक़ी है
जय uit,जय शहडोल, जय मध्यप्रदेश,जय भारत,जय वशुदेवकुटुम्बकं
असीम सौंदर्यता और पवित्र पांडव नगरी का प्रतीक इस शहडोल की पावन भूमि को नमन करता हु।
यहाँ पर विराजमान वह वट वृक्ष जिसकी छाव में यह uit परिवार फल फूल रहा है ऐसे कृतिज्ञता अभिभूत माननीय प्राचार्य महोदय को कोटि कोटि नमन करता हु,
जो पेड़ो में जल सींच कर संरक्षण कर रहे ऐसे विद्वत शिक्षको को कोटि कोटि नमन करता हूं
यहाँ पधारे सभी नवआगंतुको का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करता हु। एवं मेरे सभी प्यारे सहपाठियों
मैं आज यहाँ पर बहोत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं
ये uit का मंच मेरे लिए मेरी प्रतिष्ठा का मंच है,यह मंच मेरी योग्यताओ को बढ़ाने वाला मंच है,ये मंच मेरी क्षमताओं को बढ़ाने वाला मंच है,मेरे समर्थ को बढ़ाने वाला मंच है।
जितने भी आप यहाँ बैठे है हम सभी छात्र भविष्य के निर्माता है,हम एक शिल्प कार है हम ही है जो भारत का भविष्य रचेंगे,भारत को स्वर्णिम बनाएंगे हम ही है जो भारत को एक नई दिशा प्रदान करेंगे हम ही है जो भारत को विश्व गुरु बनाएंगे पर इसके लिए जरूरी है हमारा मूलमंत्र इस श्लोक में निहित है,
काक चेष्टा, बको ध्यानं,
स्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी, गृहत्यागी,
विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
भावार्थ यह है
कौवे की तरह जानने की चेष्टा,
बगुले की तरह ध्यान,
कुत्ते की तरह निद्रा
अल्पाहारी, आवश्यकतानुसार खाने वाला
और गृह-त्यागी होना चाहिए
इन पांचों सिद्धान्त पर चलकर महर्षियो द्वारा प्रदत्त मूलमंत्र "वशुदेव कुटुम्बकम" के सपने को साकार कर सकते है।
क्योंकि
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥
इसका भाव है:-
मूर्ख की अपने घर पूजा होती है, मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है, राजा की अपने देश में पूजा होती है विद्वान् की सब जगह पूजे जाते है|
जगतगुरु स्वामी विवेकानंद जी का यह उदगार अत्यंत सारगर्भित है :-की हमें जो करना है। जो कुछ भी बनना है। हम उस पर ध्यान नहीं देते है , और दुसरो को देखकर वैसा ही हम करने लगते है। जिसके कारण हम अपने सफलता के मंजिल के पास होते हुए दूर भटक जाते है। इसीलिए अगर जीवन में सफल होना है ! तो हमेशा हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्र्ति करना चाहिए !
दोस्तो
एक अंतिम पंक्ति के साथ अपनी वाणी को विराम देना चाहूंगा
कई जीत बाक़ी हैं कई हार बाक़ी हैं अभी ज़िंदगी का सार बाक़ी है.
यहाँ से चले हैं नयी मंज़िल के लिए ये तो एक पन्ना था अभी तो पूरी किताब बाक़ी है
जय uit,जय शहडोल, जय मध्यप्रदेश,जय भारत,जय वशुदेवकुटुम्बकं
waah
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