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Showing posts from January, 2020

मकरसंक्रांति,पोंगल,उत्तरायण आदि नाम से जाने वाले मकरसंक्रांति पर्व की विस्तृत वर्णन

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत  में किसी न किसी रूप में मनाया(व्यक्त) किया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है , इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल था आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। उत्तरायण का आरम्भ यह भारतवर्ष के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उमंग,उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। माघे-संक्रान्ति के अवसर पर महिलाएं नृत्य ग्रामीण अंचलों में आज भी किया जाता है जिसे शैला आदि नामक से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखन...

स्वागत भाषण

दीपांश शुक्ला फ्रेशर भाषण असीम सौंदर्यता और पवित्र पांडव नगरी का प्रतीक इस शहडोल की पावन भूमि को नमन करता हु। यहाँ पर विराजमान वह वट वृक्ष जिसकी छाव में यह uit परिवार फल फूल रहा है ऐसे कृतिज्ञता अभिभूत माननीय  प्राचार्य महोदय को कोटि कोटि नमन करता हु, जो पेड़ो में जल सींच कर संरक्षण कर रहे ऐसे विद्वत शिक्षको को कोटि कोटि नमन करता हूं यहाँ पधारे सभी नवआगंतुको का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करता हु। एवं मेरे सभी प्यारे सहपाठियों मैं आज यहाँ पर बहोत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं ये uit का मंच मेरे लिए मेरी प्रतिष्ठा का मंच है,यह मंच मेरी योग्यताओ को बढ़ाने वाला मंच है,ये मंच मेरी क्षमताओं को बढ़ाने वाला मंच है,मेरे समर्थ को बढ़ाने वाला मंच है। जितने भी आप यहाँ बैठे है हम सभी छात्र भविष्य के निर्माता है,हम एक शिल्प कार है हम ही है जो भारत का भविष्य रचेंगे,भारत को स्वर्णिम बनाएंगे हम ही है जो भारत को एक नई दिशा प्रदान करेंगे हम ही है जो भारत को विश्व गुरु बनाएंगे पर इसके लिए जरूरी है हमारा मूलमंत्र इस श्लोक में निहित है, काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्...